Wednesday, April 15, 2020

अध्यात्म जगत में एक रोचक एवं प्रेरणार्थक कहानी- पाप का गुरु कौन?

किसी समय काशी शिक्षा की नगरी कही जाती थी । लम्बे समय से यह परम्परा रही है कि प्रत्येक बालक जो ब्राह्मण के घर में जन्म लेता था, उसे काशी जाकर वेदादि शास्त्रों का अध्ययन करना होता था । तभी वह कर्मकाण्ड आदि पुरोहिताई के कार्य करने के योग्य होता था ।
एक बार की बात है, एक पंडितजी ने अपने बालक को भी शास्त्रों का अध्यनन के लिए काशी भेजा । सभी शास्त्रों का सांगोपांग अध्ययन करने के बाद बालक अपने गाँव लौटा । अपने विद्वान बालक के आने की ख़ुशी में पंडितजी ने एक भव्य उत्सव का आयोजन करवाया । जिसमें ज्ञान चर्चा का विषय भी रखा गया । उसमें नये पंडितजी को शास्त्रोक्त तरीके से ग्रामवासियों की समस्याओं का समाधान करना था ।
सभी लोगों ने तरह तरह के प्रश्न पूछे लगभग सभी प्रश्नों के जवाब नये पंडितजी ने शास्त्रीय व्याख्याओं से दिए । गाँव वाले बहुत प्रभावित हो हुए ।

इतने में एक बूढा किसान सामने आया और उसने पूछा – ” पाप का गुरु कौन ?”पंडितजी ने अपना दिमाग खूब दौड़ाया लेकिन इसका जवाब उन्हें कहीं नहीं मिला ।

      प्रश्न सुनकर पंडित जी चकरा गए उन्होंने धर्म व आध्यात्मिक गुरु तो सुने थे लेकिन पाप का भी गुरु होता है,यह उनकी समझ और ज्ञान के बाहर था 
                       पंडित जी को लगा कि उनका ज्ञान अभी अधूरा रह गया है वह फिर काशी लौटे अनेक गुरुवो से मिले लेकिन उन्हें किसान के सवाल का जॉब नहीं मिलाअचानक एक दिन उनकी मुलाकात एक  णिका से हो गयी उसने पंडित जी से परेशानी का कारण पूछा तो उन्होंने अपनी समस्या बता दीगणिका बोली- पंडित जी! इसका उत्तर तो बहुत सरल है ,लेकिन उत्तर पाने के लिए आपको कुछ दिन मेरे पड़ोस में रहना होगापंडित जी इस ज्ञान के लिए तो भटक रहे थे तो तुरंत तैया हो गये। गणिका ने अपने पास ही उनके अलग से रहने की व्यवस्था कर दीपंडित जी किसी के हाथ का बना खाना नहीं खाते थेअपने नियम-अचार और धर्म परम्परा के कट्टर अनुयायी थेगणिका के घर में रहकर अपने हाथ से खाना बनाते खाते कुछ दिन तो बड़े आराम से बीते,लेकिन सवाल का जवाब नहीं मिला वह उत्तर की प्रतीक्षा में रहेइस तरह चार दिन बीत गये । प्रतिदिन पंडितजी खाना बनाते और अपनी पेट पूजा करते थे । आखिर परेशान होकर पंडितजी ने वैश्या से पूछ ही लिया – “हे देवी ! मुझे मेरे प्रश्न का जवाब कब मिलेगा ?” एक दिन गणिका बोली -पंडित जी ! आपको भोजन पकाने में बड़ी दिक्कत होती है, यहाँ कोई देखने वाला तो है नहीं आप कहे तो मै स्नान कर आपके लिए
भोजन पका दिया करूँ
। पंडित जी को राजी करने के लिए उसने लालच दिया कि यदि आप मुझे सेवा का अवसर दे तो मै आपको प्रतिदिन पांच स्वर्ण मुद्राएं भी दक्षिणा स्वरुप दूंगी
                  स्वर्ण मुद्रा का नाम सुनकर पंडित जी विचारने लगे कि एक तो पका पकाया भोजन और ऊपर से सोने के सिक्के भी ! दोनों ही परिस्थितियां मेरे ही अनुकूल हैंपंडित जी ने अपना नियम व्रत ,आचार विचार धर्म सब कुछ भूल गए उन्होंने कहा तुम्हारी जैसी इच्छाबस विशेष यह ध्यान रखना कि यहाँ आते हुए तम्हे कोई देखे नहीं
                   पहले ही दिन कई प्रकार के पकवान बनाकर उसने पंडित जी के सामने परोस दिया पर ज्यों ही पंडित जी ने खाना चाहा उसने सामने परोसी हुई थाली वापस खींच ली ,वैश्या के इस व्यवहार से पंडित जी क्रौधित हो गये और तिलमिलाकर बोले – ” ये क्या मजाक है ?”
वैश्या( गणिका) ने विनम्रता पूर्वक कहा – ” श्रीमान !
 यही आपके प्रश्न का उत्तर है ।”

पंडित जी – ” मैं कुछ समझा नहीं ! ”?
वैश्या( गणिका) ने समझाते हुए कहा ” महाशय ! क्या केवल स्नान कर लेने मात्र से कोई पवित्र हो जाता है, क्या मेरी अपवित्रता केवल इतनी ही है जो केवल स्नान करके मिटाई जा सकती है ? नहीं ! लेकिन मुफ्त के भोजन और स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में आप अपने वर्षों के नियम को क्षणभर में नष्ट करने के लिए तैयार हो गये । यह लोभ ही पाप का गुरु है श्रीमान !”
पंडितजी को अपना जवाब मिल चुका  था ।
शिक्षा – यदि गहनता से अन्वेषण किया जाये तो सभी विकारों का मूल लोभ को कहा जा सकता है । फिर भी सुविधा की दृष्टि से विकारों को पांच प्रकारों में विभाजित किया गया है ।
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