Thursday, April 30, 2020

बाहर से सब्जी लाने पर क्या करें, लिफ्ट या सीढ़ियों पर कितनी सावधानी जरूरी? जानें ऐसे ही सवालों के जवाब


कोरोना वायरस के बढ़ रहे लगातार मामलों ने दुनिया भर में दहशत पैदा कर दी है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ इससे बचनेके लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाने के लिए कह रहे हैं। लेकिन कोरोना से जुड़ी खबर जिस तरह से सुर्खियाां बनती जा रही है, ऐसे में कई लोग तनाव महसूस कर रहे हैं। साथ ही इस वायरस से जुड़ी कुछ अपवाहों ने भी लोगों में डर का माहौल बना दिया है।
              ऐसे में कुछ रोजमर्रा के सवाल लोगो को परेशान कर रहे तो आइये आज हम उनसे जुड़े हुए कुछ सवालों के लिए हमारे डॉक्टर्स और एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं ये जान लेते हैं...........
  • बाहर से सब्जी लाने पर क्या करें, लिफ्ट या सीढ़ियों पर कितनी सावधानी है जरूरी ?  जानें ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब -

कोरोना संक्रमण के इस दौर में सोशल डिस्टेंसिंग इसे फैलने से रोकने के लिए सबसे कारगर तरीका है। विशेषज्ञों के मुताबिक, लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के जरिए ही कोरोना के बढ़ते संक्रमण को रोका जा सकता है। इस कोरोना संकट के बीच लोगों के बीच एक तरह से भय का माहौल है। घर में रहने से लेकर, छत पर टहलने और बाहर से जरूरी सामान लाने तक अपनी हर छोटी-बड़ी गतिविधि को लेकर लोग संशय में रहते हैं कि कहीं उन्हें कोरोना संक्रमण न हो जाए। केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार एवं कल्याण मंत्रालय के मुताबिक डरने की बजाय सावधानियां बरतने की जरूरत है। इस बात का भी ध्यान रखें कि परिवार का जो  भी सदस्य बाहर जाये ,वह घर आकर सबसे पहले खुद को सेनिटाइज करे ,फिर  बच्चों और बुजुर्गों के करीब आये। 
  • घर में किन सतहों की सफाई जरूरी है ?

विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना वायरस अलग-अलग सतहों और वस्तुओं पर कुछ घंटों से लेकर कुछ दिन तक जिंदा रह सकता है। इसलिए विशेषज्ञों का कहना है कि घर में ऐसी सतहें जहां परिवार के सदस्यों का हाथ लगता हो, उन्हें सैनिटाइज करते रहें। अपने मोबाइल, टीवी रिमोट से लेकर कुर्सी, टेबल , दरवाजों के हैंडल तक साफ करते रहना चाहिए।

  • बाहर से दूध की थैली या सब्जी लाने पर क्या करें ?

अगर आप बाजार से सब्जी लाए हैं या फिर मुहल्ले में ठेले वाले से सब्जी खरीदी है तो घर लाकर उसे गुनगने पानी से धो लें। हो सकता है कि सब्जी लेने आए कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित रहे हों और उनके खांसने या छींकने के दौरान सब्जियां भी वायरस के संपर्क में आ गई हों।सब्जियां बाहर से कई जगहों से कई हाथों से होते हुए आती हैं इसलिए इन्हें भी रोगाणुमुक्त करना आवश्यक है। सब्जियों की ही तरह आप दूध की थैली को भी घर लाने के साथ ही धो सकते हैं।

  • साबुन और हैंड सेनिटाइजर में बेहतर क्या ?

कोरोना वायरस से बचाव के लिए हैंड सैनिटाइजर और साबुन दोनों ही असरदार हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, कम से कम 60 फीसदी एल्कोहल वाले हैंड सैनिटाइजर से हाथ धोना चाहिए। हालांकि त्वचा रोग विशेषज्ञों के मुताबिक सैनिटाइजर की अपेक्षा साबुन और पानी से 20 सेकेंड तक अच्छी तरह हाथों को धोना ज्यादा बेहतर है। अगर आप बार-बार वॉशरूम नहीं जा सकते तो सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर सकते हैं। 


  • लिफ्ट-सीढ़ियों पर कितनी सावधानी जरूरी ?
सार्वजनिक जगहों में सीढ़ियों पर चढ़ते समय और लिफ्ट में आपको सावधानी बरतनी चाहिए। लिफ्ट के बटन और सीढ़ियों की रेलिंग की सतहों पर कोरोना संक्रमण की संभावना रहती है। लिफ्ट के बटन दबाते समय आप टिश्यू पेपर का इस्तेमाल कर सकते हैं और फिर उसे डिस्पोज कर देना जरूरी है। सीढ़ियां चढ़ते या उतरते समय भी रेलिंग को पकड़ने से बचें। अगर पकड़ते भी हैं तो घर में दाखिल होने के बाद हाथ साबुन से धोएं।

  • क्या सोसाइटी में घूमना सुरक्षित है ?

सोसाइटी, मोहल्ले या कॉलोनी में रहने वाले लोगों को भी सावधान रहने की जरूरत है। सोसाइटी के पार्क, जिम या कॉमन एरिया में जाने से बचना चाहिए। कोरोना वायरस के बिना लक्षण वाले मरीज भी होते हैं, जिन्हें खुद के संक्रमित होने का भी पता नहीं होता है। ऐसे लोगों के संपर्क में आने से आप भी कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं। इसलिए सार्वजनिक जगहों पर बिना वजह घूमने या टहलने से बचें। 




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Saturday, April 25, 2020

मंगलवार एवं शनिवार को क्या करें ऐसा जिससे की जीवन में हो रही समस्याओं का हो जाये निवारण, आइये जानते है .....


मंगलवार एवं शनिवार को हनुमान जी के लिए ये करें इससे उनकी कृपा आप पर अवश्‍य बनी रहेगी-


हनुमान जी अजर-अमर हैं और इस कलयुग में जागृत देव हैं। हनुमान जी की भक्ति काफी आसान है। हनुमान जी की पूजा करने से विशेष लाभ होता है। आइए, आज हम आपको एक आसान उपाय बताने जा रहे हैं, जिसको करने से आपकी सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी और आप पर हनुमान जी की विशेष कृपा रहेगी। 
              मंगलवार और शनिवार हनुमान के लिए खास माना जाता है । समस्याओं से आपको निजात हनुमान जी दिला सकते है क्योंकि इनकी साधना अति सरल एवं सुगम है चूंकि वह बाल ब्रह्मचारी थे इसलिए इनकी साधनाओं में ब्रह्मचारी व्रत अवश्य लेना चाहिए। सदाचारी रहना चाहिए। माना जाता है कि कलयुग में हनुमान जल्द ही मनोकामनाएं पूर्ण कर देती है, लेकिन हनुमान जी की पूजा करते समय साफ-सफाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना अनिवार्य है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता नहीं होनी चाहिए। जब भी पूजा करें, तब हमें मन से और तन से पवित्र हो जाना चाहिए। पूजन के दौरान गलत विचारों की ओर मन को भटकने न दें।

  • ऊँ रामदूताय नम:
  • ऊँ पवन पुत्राय नम:
                       इन मंत्रों के बाद हनुमान चालीसा का जप करें।

    आइये जानते है बजरंग बाण के की फायदे है –
v बजरंग बाण-

बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए भक्त कई मंत्रों का जप करते
हैं। सभी मंत्रों में हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का विशेष
महत्व होता है।  हर मंगलवार और शनिवार को बजरंग बाण का
पाठ करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। संभव
हो तो नित्य बजरंग बाण का पाठ करें।  समस्या कितनी ही बड़ी
क्यों न हो हनुमानजी की आराधना करने से आसानी से सुलझ
जाती है। आइए, आज जानते हैं बजरंग बाण के पाठ  करने के
फायदे........


v विवाह से जुड़ी समस्या दूर हो जाती है-
   मंगलवार और शनिवार को  बजरंग   बाण का पाठ करने से विवाह
  से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं।

v ग्रह दशा ठीक हो जाती है-
 शनि, राहु और केतु की महादशा अगर आपके ऊपर चल रही है तो
 मंगलवार और शनिवार के दिन 3 बार बजरंगबाण का पाठ करने से
आपकी कुंडली से खराब ग्रह दशा ठीक हो जाती है।

v नौकरी में दिक्कत नहीं आती है-
बजरंगबाण का पाठ करने से नौकरी में आ रही तमाम तरह की
बाधाएं या फिर नौकरी छूटने का डर दूर हो जाता है। 


v नकारात्मकता दूर हो जाती है-
मंगलवार और शनिवार को बजरंग बाण का पाठ करने से भय दूर
हो जाता है। घर से नकारात्मकता दूर हो जाती है।

v गंभीर रोगों से मुक्ति-
दिन में 2 बार सुबह और शाम को बजरंग बाण का पाठ करने से
गंभीर से गंभीर रोग भी ठीक हो जाते हैं।

v वास्तुदोषों से छुटकारा-
वास्तुदोष की समस्या से निजात पाने के लिए बजरंगबाण का पाठ
करना चाहिए

  •  बजरंग बाण (Bajrang Baan पाठ-


॥दोहा॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥
॥चौपाई॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहुं उर अन्तर्यामी॥
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दु:ख करहुं निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर। सुर समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होउ हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं। तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥
पाय परौं कर जोरि मनावों। यह अवसर अब केहि गोहरावों॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता। शंकर सुवन धीर हनुमन्ता॥
बदन कराल काल कुल घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल काल मारीमर॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि दास कहावो। ताकी शपथ विलम्ब न लावो॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा॥
चरण शरण करि जोरि मनावों। यहि अवसर अब केहि गोहरावों॥
उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई। पांय परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल। ॐ सं सं सहम पराने खल दल॥
अपने जन को तुरत उबारो। सुमिरत होय आनन्द हमारो॥
यहि बजरंग बाण जेहि मारो। ताहि कहो फिर कौन उबारो॥
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की॥
यह बजरंग बाण जो जापै। तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे॥
धूप देय अरु जपै हमेशा। ताके तन नहिं रहे कलेशा॥
॥दोहा॥
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥


धार्मिक उपदेशों, ग्रंथों में वह ताकत है जो हमारे दुखों का निवारण करती है, इस बात में कोई संदेह नहीं है। जब भी हम परेशान होते हैं तो अपनी समस्या का हल पाने के लिए शास्त्रीय उपायों का इस्तेमाल जरूर करते हैं। इसे आप चमत्कार ही कह लीजिए, लेकिन शास्त्रों में हमारी हर समस्या का समाधान है।

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परशुराम जयंती के उपलक्ष्य पर आइये जानते है उनके बारे में कुछ अद्भुत बातें...

भगवान परशुराम विष्णुजी के छठे अवतार और सात चिरंजीवी में से एक हैं, जो कलयुग के समय आज भी इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन इनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती दोनों मनाई जाएगी। भगवान परशुराम की जयंती के अवसर पर आइए जानते हैं उनसे जुड़ी हुई कुछ बातें…................
परमावतार परशुराम जयंती

Friday, April 24, 2020

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के बारे में कुछ विशेष जानकारी

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (National Panchayati Raj Day )


ग्राम स्वराज के बारे में मेरा विचार यह है कि एक पूर्ण गणतंत्र है, जो अपने पड़ोसियों के लिए अपनी महत्वपूर्ण इच्छाओं के लिए स्वतंत्र है, और फिर भी कई अन्य लोगों के लिए स्वतंत्र है जिसमें निर्भरता एक आवश्यकता है। 

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (राष्ट्रीय स्थानीय स्वशासन दिवस) भारत में पंचायती राज प्रणाली का राष्ट्रीय दिवस है जिसे पंचायती राज मंत्रालय द्वारा प्रतिवर्ष 24 अप्रैल को मनाया जाता है।

तीजन बाई जन्मदिन विशेष ,कुछ विशेष बातें उनके बारे में

पंडवानी लोकगीत नाट्य शैली को वैश्विक स्तर पर पहचान देने वाली तीजन बाई जी का आज जन्मदिवस है आइये उनके बारे में कुछ महत्वपूर्ण बाते जानते है-
तीजन बाई (जन्म 24 अप्रैल 1956) पंडवानी की एक प्रतिपादक हैं, जो छत्तीसगढ़ की एक पारंपरिक प्रदर्शन कला का रूप है, जिसमें वह संगीतमयी संगत के साथ महाभारत के किस्से गढ़ती हैं।

उन्हें 1987 में पद्म श्री, 2003 में पद्म भूषण, और भारत सरकार द्वारा 2019 में पद्म विभूषण, 1995 में 1995 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1995 में संगीत नाटक अकादमी, भारत की राष्ट्रीय संगीत अकादमी, नृत्य और नाटक द्वारा दिया गया।
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Padma Vibhushan

Teejan Bai
Tijan Bai 1.jpg

आवासगनियारी ग्राम, भिलाई,
दुर्ग जिला, छत्तीसगढ़
व्यवसायपंडवानी लोक गीतकार
जीवनसाथीतुक्का राम
पुरस्कारपद्म भूषण 2003
पद्म श्री 1987
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 1995
पद्म विभूषण 2019

13 साल की उम्र में, उसने अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 10 रुपये में एक पड़ोसी गाँव, चंद्रखुरी (दुर्ग) में दिया, एक महिला के लिए पहली बार 'पंडवानी' के कपालिक शिलि (शैली) में गाते हुए, जैसा कि पारंपरिक रूप से महिलाएँ गाती थीं। वेदमती में, बैठी हुई शैली। परंपरा के विपरीत, तीजन बाई ने अपनी विशिष्ट कण्ठस्थ आवाज और अचूक वाणी में जोरदार गायन का प्रदर्शन किया, जो उस समय तक एक पुरुष गढ़ था।

थोड़े समय के भीतर, उसे आस-पास के गाँवों में जाना जाने लगा और विशेष अवसरों और त्योहारों पर प्रदर्शन के लिए निमंत्रण मिलता था।

उनका बड़ा ब्रेक तब आया, जब मध्य प्रदेश के एक थिएटर व्यक्तित्व हबीब तनवीर ने उनकी प्रतिभा पर ध्यान दिया, और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी के प्रदर्शन के लिए बुलाया गया। कालांतर में उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली, 1988 में पद्मश्री, 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, और 2003 में पद्म भूषण।

1980 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने इंग्लैंड, फ्रांस, स्विटजरलैंड, जर्मनी, तुर्की, ट्यूनीशिया, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मॉरीशस जैसे देशों में सांस्कृतिक राजदूत के रूप में पूरी दुनिया की यात्रा की। उन्होंने श्याम बेनेगल की प्रशंसित दूरदर्शन टीवी श्रृंखला भारत एक खोज में महाभारत से लेकर जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक पर आधारित दृश्यों का प्रदर्शन किया।

आज वह दर्शकों को लुभाना जारी रखती है, दुनिया उसकी अनोखी लोक गायन और उसकी शक्तिशाली आवाज के साथ; और युवा पीढ़ी के लिए उसके गायन पर गुजरती हैं।

पुरस्कार-
The President, Shri Ram Nath Kovind presenting the Padma Vibhushan Award to Smt. Teejan Bai, at an Investiture Ceremony, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on March 16, 2019
  • 1988 Padma Shri (पद्म श्री)
  • 1995 Sangeet Natak Akademi Award
  • 2003 Hon. D. Litt, Bilaspur University (संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड)
  • 2003 Padma Bhushan (पद्म भूषण)
  • 2016 M S Subbalaxmi centenary award (एम एस सुब्बालक्ष्मी शताब्दी पुरस्कार)
  • 2018 Fukuoka prize(फुकुओका पुरस्कार)
  • 2019 Padma Vibhushan (पद्म विभूषण)

पंडवानी लोकगीत के बारे में-

पंडवानी छत्तीसगढ़ का वह एकल नाट्य है जिसका अर्थ है पांडववाणी - अर्थात पांडवकथा, यानी महाभारत की कथा। ये कथाएं छत्तीसगढ़ की परधान तथा देवार छत्तीसगढ़ की जातियों की गायन परंपरा है। परधान गोंड की एक उपजाति है और देवार धुमन्तू जाति है। इन दोनों जातियों की बोली, वाद्यों में अन्तर है। परधान जाति के कथा वाचक या वाचिका के हाथ में "किंकनी" होता है और देवारों के हाथों में र्रूंझू होता है। परधानों ने और देवारों ने पंडवानी लोक महाकाव्य को पूरे छत्तीसगढ़ में फैलाया। तीजन बाई ने पंडवानी को आज के संदर्भ में ख्याति दिलाई, न सिर्फ हमारे देश में, बल्कि विदेशों में भी.

Thursday, April 23, 2020

देश की ऐसी प्रथम महिला जिन्हे पंडित की उपाधि से सम्मानित किया गया...........

रमाबाई, डोंगरे मेधावी [पंडिता रमाबाई सरस्वती] (1858-1922)

आज पंडिता रमाबाई के जन्मदिवस पर उन्हें याद करने का मौका हमें मिल रहा है। वह एक ऐसी शख्शियत थी जिन्होंने महिलाओं के अधिकार और शिक्षा के लिए उल्लेखनीय कार्य किये थे ,आइये अब उनके बारे में कुछ बातें जान लेते हैं-

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Pandita Ramabai
Pandita Ramabai Sarasvati 1858-1922 front-page-portrait.jpg
पंडिता रमाबाई सरस्वती

Occupationसमाज सुधारक, नारीवादी
Years active1885 to 1922
Organizationपंडिता रमाबाई मुक्ति मिशन, केडगाँव
Known forबेसहारा और अनाथ लड़कियों के बीच मंत्रालय
Notable work
उच्च जाति की हिंदू महिला
Childrenमनोरमा
समाज सुधारक पंडिता रमाबाई का जन्म साल 1858 में 23 अप्रैल को हुआ था...

जानिए इनसे संबंधित महत्वपूर्ण फैक्ट्स को....

1. उन्होंने मुक्ति मिशन शुरू किया, जो ठुकराई गई महिलाओं-बच्चों का ठिकाना था. बंबई में 20 लड़कियों के साथ शारदा सदन की शुरुआत की.

2. वो संस्कृत की विद्वान थीं इसलिए उनके नाम से पहले पंडिता लगा करता था.

3. आर्य महिला समाज के जरिए उच्च जाति की हिंदू महिलाओं को लड़कियों की शिक्षा की कोशिशों में जुटाया.

4. वो सात भाषाएं जानती थीं, धर्मपरिवर्तन कर ईसाई बन गईं और बाइबल की अनुवाद मराठी में किया.

5. साल 1919 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कैसर-ए-हिंदी की उपाधि से नवाजा.

आइये अब उनके जीवन के बारे में कुछ बातें जान लेते है-
  • रमाबाई डोंगरे (डोंगरे उनका पारिवारिक नाम, मेधावी उनका विवाहित नाम) एक उच्च जाति के हिंदू परिवार में पैदा हुई थीं।
  •  उसके पिता हिंदू महाकाव्य और पौराणिक ग्रंथों के भटकने वाले पेशेवर थे। 
  • 1874 के अकाल में उसके माता-पिता की मृत्यु के बाद, उसने और उसके भाई ने परिवार की परंपरा को जारी रखा। 
  • 1878 में कलकत्ता जाकर, "पंडिता" और "सरस्वती" की उपाधि उन्हें उनकी शिक्षा की प्राप्ति के रूप में दी गई। 
  • वह ब्रह्म समाज (एक सुधारवादी हिंदू संघ) में शामिल हो गईं और जून 1880 में उनकी तुलना में बहुत कम जाति के व्यक्ति से शादी कर ली। 
  • उनके एकमात्र बच्चे, मनोरमा, का जन्म अप्रैल 1881 में हुआ था। 
  • एक साल से भी कम समय के बाद उनके पति का हैजा से निधन हो गया, जिससे वह एक उच्च जाति की हिंदू विधवा की असमान स्थिति में चली गईं।
              यह भी जाने- एक ऐसा पहाड़ जो रंग बदलता है............

पुरस्कार और सम्मान
भारत की 1989 की मुहर पर रमाबाई
  • 1919 में सामुदायिक सेवा के लिए केसरी-ए-हिंद पदक, ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा प्रदान किया गया। 
  • वह 5 अप्रैल,  को एपिस्कोपल चर्च (यूएसए) के लिटर्जिकल कैलेंडर पर एक दावत के दिन और 30 अप्रैल को इंग्लैंड के चर्च के लिटर्जिकल कैलेंडर में एक स्मरणोत्सव दिवस के साथ सम्मानित किया जाता है। 
  • 26 अक्टूबर 1989 को, भारतीय महिलाओं की उन्नति में उनके योगदान को देखते हुए, भारत सरकार ने एक स्मारक डाक टिकट जारी किया।
  • उनके सम्मान में मुंबई की एक सड़क का नाम भी रखा गया है। गामदेवी इलाके के आसपास के क्षेत्र में ह्यूजेस रोड को नाना चौक से जोड़ने वाली सड़क को पंडिता रमाबाई मार्ग के नाम से जाना जाता है। 



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Wednesday, April 22, 2020

बॉलीवुड को नया दौर देने वाले बी.आर.चोपड़ा का है आज जन्मदिन....

आज भारतीय सिनेमा जगत के डायरेक्टर बी. आर. चोपड़ा का है जन्मदिन, जानिए इनसे जुड़ी कुछ खास बातें-


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Baldev Raj Chopra
B.R.Chopra.jpg
Born22 April 1914
Died5 November 2008 (aged 94)
NationalityIndian
OccupationFilm producer, director.
Years active1944–2006
ChildrenRavi Chopra, Shashi Chopra, Bina Chopra
RelativesSee Chopra-Johar family
HonoursDadasaheb Phalke Award (1998)
Padma Bhushan (2001)
भारतीय सिनेमा जगत में बी.आर.चोपड़ा (B.R. Chopra) को एक ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने पारिवारिक, सामाजिक और साफ-सुथरी फिल्में बनाकर लगभग पांच दशक तक सिने प्रेमियों के दिलो-दिमाग में अपनी खास जगह बनायी।
22 अप्रैल 1914 को पंजाब के लुधियाना (Ludhiana) शहर में जन्मे बी आर चोपड़ा उर्फ बलदेव राय चोपड़ा बचपन के दिनों से ही फिल्म में काम करके शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचना चाहते थे। बी.आर.चोपड़ा ने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातकोत्तर की शिक्षा लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कालेज में पूरी की।
बी.आर.चोपड़ा ने अपने करियर की शुरूआत बतौर फिल्म पत्रकार के रूप में की। फिल्मी पत्रिका सिने हेराल्ड में वह फिल्मों की समीक्षा लिखा करते थे। वर्ष 1949 में फिल्म करवट से उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा लेकिन दुभार्ग्य से यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह असफल हो गयी।
   वर्ष 1955 में बी.आर.चोपडा ने बी.आर.फिल्मस बैनर का निर्माण किया। बी.आर.फिल्मस के बैनर तले उन्होंने सबसे पहले फिल्म नया दौर का निर्माण किया।  फिल्म नया दौर के माध्यम से बी.आर.चोपडा ने आधुनिक युग और ग्रामीण संस्कृति के बीच टकराव को रूपहले पर्दे पर पेश किया जो दर्शकों को काफी पसंद आया। फिल्म नया दौर ने सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किये।
बी.आर.चोपड़ा के बैनर तले निर्मित फिल्मों पर यदि एक नजर डालें तो उनकी निर्मित फिल्में समाज को संदेश देने वाली होती थीं। बी.आर.चोपड़ा अपने दर्शकों को हर बार कुछ नया देना चाहते थे। इसी को देखते हुये वर्ष 1960 में उन्होंने कानून जैसी प्रयोगात्मक फिल्म का निर्माण किया। यह फिल्म इंडस्ट्री में एक नया प्रयोग था जब फिल्म का निर्माण बगैर गीतों के भी किया गया।
वार्ता के मुताबिक अपने भाई और जाने-माने निमार्ता निर्देशक यश चोपड़ा को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाने में बी.आर.चोपडा का अहम योगदान रहा है। धूल का फूल, वक्त और इत्तेफाक जैसी फिल्मों की सफलता के बाद ही यश चोपड़ा फिल्म इंडस्ट्री में निर्देशक के रूप में स्थापित हुये थे। सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका आशा भोंसले को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाने में निर्माता निर्देशक बी.आर.चोपड़ा की फिल्मों का अहम योगदान रहा है।
पचास के दशक में जब आशा भोंसले को केवल बी और सी ग्रेड की फिल्मों में ही गाने का मौका मिला करता था। बी.आर. चोपड़ा ने आशा भोंसले की प्रतिभा को पहचाना और अपनी फिल्म नया दौर में गाने का मौका दिया। यह फिल्म आशा भोंसले के सिने करियर की पहली सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में मोहम्मद रफी और आशा भोंसले के गाये युगल गीत बहुत लोकप्रिय हुये जिनमें मांग के साथ तुम्हारा... उड़े जब जब जुल्फें तेरी जैसे गीत शामिल हैं।फिल्म नया दौर की कामयाबी के बाद ही आशा को अपना सही मुकाम हासिल हुआ। इसके बाद बी.आर. चोपड़ा ने आशा को अपनी कई फिल्मों में गाने का मौका दिया। इन फिल्मों में वक्त, गुमराह, हमराज, आदमी और इंसान और धुंध प्रमुख हैं। आशा भोंसले के अलावा पार्श्वगायक महेन्द्र कपूर को भी हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने में बी.आर.चोपड़ा की अहम भूमिका रही।
वार्ता के मुताबिक अस्सी के दशक में स्वास्थ्य खराब रहने के कारण बी.आर.चोपड़ा ने फिल्म का निर्माण करना कुछ कम कर दिया। वर्ष 1985 में बी.आर .चोपड़ा ने दर्शकों की नब्ज पहचानते हुये छोटे पर्दे की ओर भी रूख कर लिया। दूरदर्शन के इतिहास में अब तक सबसे कामयाब  सीरियल महाभारत के निर्माण का श्रेय भी बी.आर. चोपड़ा को ही जाता है।

लगभग 96 प्रतिशत दर्शकों तक पहुंचने के साथ ही इस सीरियल ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज कराया।
बी.आर.चोपड़ा को मिले सम्मान पर यदि नजर डालें तो साल 1998 में हिन्दी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किये गये। इसके अलावा वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म कानून के लिये वह सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बी.आर.चोपड़ा ने फिल्म निर्माण के अलावा बागबान और बाबुल की कहानी भी लिखी। अपनी निर्मित फिल्मों से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले फिल्मकार बी.आर. चोपड़ा पांच नवंबर 2008 को इस दुनिया से अलविदा कह गये।