Saturday, May 9, 2020

महाराणा प्रताप जयंती विशेष

हल्दीघाटी की माटी आज भी बताती है महाराणा प्रताप की गौरव गाथा


महाराणा प्रताप राजसिंहासन में

महान योद्धा महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) को देश का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है. वीरता और युद्ध कला के लिए मशहूर महाराणा प्रताप (Maharana Pratap Jayanti 2020) की आज (9 मई) जयंती है. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में हुआ था.
महाराणा प्रताप
मेवाड़ के १३वें महाराणा
RajaRaviVarma MaharanaPratap.jpg
राजा रवि वर्मा द्वारा चित्रित महाराणा प्रताप
राज्याभिषेक28 फ़रवरी1572
पूर्ववर्तीमहाराणा उदयसिंह
उत्तरवर्तीमहाराणा अमर सिंह[1]
मंत्रीभामाशाह
जन्म9 मई 1540
कुम्भलगढ़ दुर्गमेवाड़ [2]
(वर्तमान में:कुम्भलगढ़ दुर्ग, राजसमंद जिला, राजस्थान, भारत)
निधन19 जनवरी 1597 (उम्र 56)
चावंडमेवाड़
(वर्तमान में:चावंड, उदयपुर जिला, राजस्थान, भारत)
जीवनसंगीमहारानी अजाब्दे पंवार सहित कुल 11 पत्नियां
संतानअमर सिंह प्रथम
भगवान दास
(17 पुत्र)
पूरा नाम
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया
घरानासिसोदिया राजपूत
पितामहाराणा उदयसिंह
मातामहाराणी जयवंताबाई[3]
धर्मसनातन धर्म
भारतवर्ष के महान योद्धा महाराणा प्रताप को भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। वह मेवाड़ में सिसौदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं। हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध को 300 साल हो चुके हैं, पर आज भी वहां युद्ध मैदान में तलवारें पाई जाती हैं। इस युद्ध में ना तो अकबर की जीत हुई और ना ही महाराणा प्रताप की। कहा जाता है कि जब अकबर को महाराणा प्रताप के निधन का पता लगा तो वह भी रो पड़ा।
अकबर ने महाराणा प्रताप को प्रस्ताव दिया था कि यदि वे उसके सामने झुक जाते हैं तो आधा भारत महाराणा प्रताप का हो जाएगा परंतु उन्होंने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। हल्दीघाटी का युद्ध 21 जून 1576 को लड़ा गया और दोनों सेनाओ के बीच भीषण युद्ध हुआ जो केवल चार घंटे में ही समाप्त हो गया। हल्दीघाटी युद्ध के बाद से और चेतक की मृत्यु से उनका दिल पसीज गया और उन्होंने मुगलों से जीतने तक महल त्यागकर जंगल में जीवन बिताने का निश्चय किया। महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो था। उनके कवच का वजन 72 किलो था। महाराणा प्रताप भाला, ढाल, दो तलवारें, कवच लेकर युद्ध में जाते थे, जिसका कुल वजन 208 किलो होता था। इतना भार लेकर युद्ध करना सामान्य पुरुष के लिए संभव नहीं है। युद्ध में महाराणा प्रताप दो तलवार रखते थे। यदि उनके दुश्मन के पास तलवार नहीं होती थी तो उसे अपनी एक तलवार देते थे जिससे कि युद्ध बराबरी का हो। महाराणा प्रताप की तरह उनके सेनापति और सैनिक भी बहुत वीर थे। उनका एक सेनापति युद्ध में सिर कटने के बाद भी लड़ता रहा। महाराणा प्रताप वर्षों तक मेवाड़ के जंगलो में घूमे। लगातार 30 वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद अकबर, महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका। महाराणा प्रताप ने अपने वंशजों को वचन दिया था कि जब तक वह चित्तौड़ वापस हासिल नहीं कर लेते, तब तक वह पुआल पर सोएंगे और पेड़ के पत्ते पर खाएंगे। आखिर तक महाराणा प्रताप को चित्तौड़ वापस नहीं मिला। उनके वचन का मान रखते हुए आज भी कई राजपूत अपने खाने की प्लेट के नीचे एक पत्ता रखते हैं और बिस्तर के नीचे सूखी घास का तिनका रखते हैं।

राजस्थान में ऐतिहासिक स्थल में महाराणा प्रताप

               

                    ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की बहादुरी की आगरा में बहुत चर्चा होती थी. यही कारण है कि अकबर को रात में उनके सपने आते थे. शूरवीर महाराणा प्रताप ने अपने जीवन के दौरान कुछ अनमोल विचार दिए थे. जिन्हें पढ़ा जाना चाहिए. पढ़ें महाराणा प्रताप के ऐसे कुछ विचार जिनसे आपके सोचने का नजरिया भी बदल जाएगा-
1. मातृभूमि और अपने मां में तुलना करना और अन्तर समझना निर्बल और मूर्खों का काम है.
2. समय इतना बलवान है कि राजा को भी घास की रोटी खिला सकता है.
3. ये दुनिया कर्म करने वालों को ही पसंद करती है. इसलिए कर्म करो.
4. हार आपसे आपका धन छीन सकती है लेकिन आपका गौरव नहीं.
5. जो बुरे वक्त से डर जाते है उन्हें न सफलता मिलती है और न ही इतिहास में जगह.
6. अगर इरादा नेक हो तो इंसान कभी हार नहीं सकता है.
7. जो इंसान अपने और परिवार के आलावा भी सबके विषय में सोचे वो ही सच्चा नागरिक कहलाने के योग्य है.
8. अपने कर्मों से वर्तमान को इतना विश्वास दिला दो कि वो भविष्य को भी अच्छा होने पर मजबूर कर दे.
9. सुख से जीवन जीने से अच्छा है, राष्ट्र के लिए कष्ट सहो.
10. सम्मानहीन व्यक्ति मुर्दे के समान है.

बाल्यकाल में महाराण प्रताप


वैसे तो उनके जीवन से जुड़े कई युद्ध है लेकिन हल्दीघाटी का युद्ध ज्यादा प्रसिद्ध है जो उनके और अकबर के मध्य लड़ा गया था -

यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। भील सेना के सरदार राणा पूंजा भील थे । इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे- हकीम खाँ सूरी।
इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध मे राणा पूंजा भील का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की। वहीं ग्वालियर नरेश 'राजा रामशाह तोमर' भी अपने तीन पुत्रों 'कुँवर शालीवाहन', 'कुँवर भवानी सिंह 'कुँवर प्रताप सिंह' और पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गया।
इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजय हुए। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर एेसा कुछ नहीं हुआ, ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुग़लों के छक्के छुड़ा दिया थे और सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी। आप इस युद्ध की अधिक गहराई में जानकारी हल्दीघाटी का युद्ध लेख पर पढ़ सकते हैं।

चेतक पर सवार राणा प्रताप की प्रतिमा (महाराणा प्रताप स्मारक समिति, मोती मगरी , उदयपुर)


  • दिवेेेेर का युुद्ध-
राजस्थान के इतिहास 1582 में दिवेर का युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है, क्योंकि इस युद्ध में राणा प्रताप के खोये हुए राज्यों की पुनः प्राप्ती हुई, इसके पश्चात राणा प्रताप व मुगलो के बीच एक लम्बा संघर्ष युद्ध के रुप में घटित हुआ, जिसके कारण कर्नल जेम्स टाॅड ने इस युद्ध को "मेवाड़ का मैराथन " कहा |






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